लिंगराज मंदिर के बारे में जानकारी

नमस्कार दोस्तों स्वागत है आप सभी का मेरे एक और नये लेख में जिसमें मैं आपको लिंगराज मंदिर के बारे में बताऊँगा। लिंगराज का अर्थ होता है, लिंगम का राजा और भगवान शिव को लिंग के रूप में पूजा जाता है। इसलिए यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित एक प्रसिद्ध हिन्दू मंदिर है। यह मंदिर ओडिशा राज्य की राजधानी भुवनेश्वर में स्थित है, और शहर के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। लिंगराज मंदिर दक्षिण भारत का प्रमुख धर्मिक स्थल है और यह मंदिर हिन्दुओं की आस्था का केंद्र भी है।

लिंगराज मंदिर

लिंगराज मंदिर का इतिहास  

लिंगराज मंदिर के कुछ हिस्से का निर्माण 7 वीं शताब्दी में किया गया था। इस मंदिर के वर्तमान स्वरूप का निर्माण 11 वीं शताब्दी में किया गया, लेकिन मंदिर के भोग मंडप का निर्माण 12 वीं शताब्दी में किया गया था। लिंगराज मंदिर का निर्माण सोमवंशी राजा ययाति प्रथम द्वारा करवाया गया। बाद में जाजति केशरी नाम के राजा ने भुवनेश्वर को अपनी राजधानी बनाया। उस समय इस मंदिर के आस पास के क्षेत्र को एकमरा के रूप में जाना जाता था। तब उस समय रानियों ने यह सम्पूर्ण क्षेत्र मंदिर में पूजा पाठ करने वाले ब्राह्मणों को दान कर दिया था। सभी ब्राह्मण मंदिर के आस पास गाँव बनाकर रहने लगे। इन सभी ब्राह्मणों को जीवन यापन करने के लिए शाही अनुदान मिलता था। 11 वीं शताब्दी में मंदिर निर्माण के बाद राज राजा द्वितीय इस मंदिर में दर्शन के लिए आए और उन्होंने इस मंदिर को बहुत सारे सोने के सिक्के दान किए थे। उन सिक्कों का उपयोग इस मंदिर के रख रखाव में किया जाता था।

लिंगराज मंदिर का धार्मिक महत्व  

लिंगराज मंदिर को प्राचीन समय में एकमरा क्षेत्र कहा जाता था, क्यूंकि भगवान शिव का लिंग एक आम के पेड़ के नीचे स्थित था। पौराणिक कथाओं के अनुसार यहाँ पर पीठासीन देवता को त्रेता युग में नहीं देखा गया था, लेकिन द्वापर और कलियुग के दौरान यहाँ पर एक पत्थर का लिंग बना हुआ दिखा। इसलिए इस लिंग को स्वयंभू भी कहा जाता है। बाद में 11 वीं सदी में यहाँ पर भगवान शिव के मंदिर का निर्माण किया गया। आमतौर पर भगवान शिव के मंदिरों में झंडे पर त्रिशूल बनाया जाता है, लेकिन इस मंदिर के झंडे पर पिनाक धनुष बनाया गया।

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लिंगराज मंदिर की वास्तुकला  

लिंगराज मंदिर की निर्माण शैली पूरी तरह से कलिंग शैली से मेल खाती है। मंदिर के सभी बाहरी दीवारों एक जैसी नक्कासी की गई है। यह मंदिर तीन खंडों में विभाजित है। प्रत्येक खंड में एक मंदिर बना हुआ है। मंदिर के प्रवेश द्वार में दक्षिण दिशा की ओर भगवान गणेश की मूर्ति विराजमान है। जो इस मंदिर की सुंदरता को बढ़ा देती है, पश्चिम दिशा की ओर माता पार्वती की मूर्ति विराजमान है और उत्तर दिशा की ओर भगवान कार्तिकेय की मूर्ति विराजमान है। इस मंदिर में कई स्तम्भ और हॉल बनाए गए हैं, जो इस मंदिर की सुंदरता में चार चाँद लगा देते है। मंदिर के मुख्य द्वार पर भगवान गणेश का मंदिर स्थित है, उसके बाद नंदी बैल की मूर्ति स्थित है। यह मंदिर तीनों लोकों के भगवानों को समर्पित है। मंदिर के गर्भ गृह में भगवान शिव की एक विशाल प्रतिमा विराजमान है। जिसका व्यास लगभग 8 फीट है। भगवान शिव की प्रतिमा को जमीन से 8 इंच ऊपर एक मंच पर बनाया गया है।

लिंगराज मंदिर

लिंगराज मंदिर का मुख्य तीर्थ दर्शन  

इस मंदिर को चार भागों (गर्भ गृह, यज्ञ शाला, भोग मंडप और नाट्य शाला) में बाँटा गया है। मंदिर के गर्भ गृह में भगवान शिव और विष्णु दोनों की पूजा की जाती है। मंदिर के गर्भ में स्थिर शिव लिंग को प्रतिदिन पानी और दूध से नहलाया जाता है। पूजा करते समय भगवान शिव को बेल की पत्तियाँ भी चढ़ाई जाती हैं। भगवान शिव के भक्त भोलेनाथ को खुश करने के लिए भाँग भी चढ़ते है।

लिंगराज मंदिर के खुलने का समय  

लिंगराज मंदिर का खुलने का समय प्रतिदिन सुबह 6:00 बजे से रात 9:00 बजे तक है। यह मंदिर दिन कुछ समय के लिए दोपहर 12:30 बजे से 3:30 बजे तक बंद रहता है। इस समय अवधि के दौरान मंदिर में मत जाएं, और बाँकी समय आप कभी भी मंदिर में जा सकते हो। मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय सुबह का होता है।

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लिंगराज मंदिर में मनाए जाने वाले त्योहार  

लिंगराज मंदिर में मनाए जाने वाले कुछ प्रमुख त्योहारों के बारे में नीचे बताया गया है।

1-महा शिवरात्रि

यह इस मंदिर सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है। शिवरात्रि के दिन इस मंदिर में भारी मात्रा में भक्तों की भीड़ जमा रहती है। उस दिन सभी लोग भगवान शिव के दर्शन करते हैं, और उनका जलाभिषेक करते हैं।

2- सुनियन दिवस

यह त्योहार हिंदू कैलेंडर के अनुसार भाद्र महीने में मनाया जाता है। यह त्योहार सदियों से मनाया जाता है। इस दिन सभी भक्त लोग, किसान और यहाँ से आस पास के लोग यहाँ दर्शन के लिए आते हैं। सभों लोग मिलकर यहाँ की स्थानीय परंपरा के अनुसार भगवान शिव की पूजा आराधना करते हैं।

3- कैंडन यात्रा

यह लिंगराज मंदिर में 22 दिनों तक चलने वाला त्योहार है। इस त्योहार के दौरान सभी भक्तगण मंदिर के देवी देवताओं को चंदन का लेप लगाते हैं। लेप लगाने के बाद मंदिर के सामने स्थित तलब में स्नान करते हैं।

4- रथ यात्रा

यह उत्सव प्रतिवर्ष अशोकाष्टमी के दिन मनाया जाता है। उस दिन सभी भक्त भगवान लिंगराज और उनकी बहन रुक्मणी की मूर्तियों के साथ एक रथ यात्रा निकलते हैं।

लिंगराज मंदिर

लिंगराज मंदिर के आस पास घूमने के स्थान  

अगर आप लिंगराज मंदिर के आस पास घूमना चाहते हो तो कुछ प्रमुख जगहों के बारे में नीचे बताया गया है। आप वहाँ जाकर उस जगह का आनंद ले सकते हो।

1- मुक्तेश्वर मंदिर

मुक्तेश्वर मंदिर का निर्माण 10 वीं शताब्दी में किया गया था। यह ओडिशा राज्य में स्थित एक हिन्दू मंदिर है। यह मंदिर भी शिव को समर्पित है। इसका निर्माण मुक्तेश्वर शैली के अनुसार किया गया है। मुक्तेश्वर मंदिर को भी राजरानी मंदिर और लिंगराज मंदिर की तरह माना जाता है।

2- राजरानी मंदिर

राजरानी मंदिर को प्राचीन समय में इंद्रेश्वर के नाम से जाना जाता था। यह मंदिर महिलाओं और पुरुषों की कामुक नक्काशी के के लिए प्रसिद्ध है। जिस कारण लोग इसे प्रेम मंदिर के नाम से भी जानते हैं।

3- परशुरामेश्वर मंदिर

परशुरामेश्वर मंदिर भुवनेश्वर शहर के पूर्व दिशा में स्थित है। इसका निर्माण 7 वीं से 8 वीं शताब्दी के बीच में हुआ था। यह भगवान शिव का प्राचीन मंदिर है। यह मंदिर इस राज्य का ससे प्राचीन मंदिर है।

4- ब्रम्हेश्वर मंदिर

ब्रम्हेश्वर मंदिर एक प्रसिद्ध हिन्दू मंदिर है। यह ओडिशा राज्य में भगवान शिव का मंदिर है। इसका निर्माण 9 वीं शताब्दी में सोमवंशी राजा उद्योतकेसरी के शासनकाल में किया गया था। मंदिर में स्थित शिलालेखों से इस बात की जानकारी मिलती थी। लेकिन संरक्षण के अभाव में सभी शिलालेख खत्म हो गए हैं।

5- उदयगिरि और खंडगिरी गुफाएं

उदयगिरि और खंडगिरी गुफाओं को पहले कट्टक गुफाओं के नाम से जाना जाता था। यह गफाएं भुवनेश्वर शहर के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व को दर्शाती हैं। इन गुफाओं का निर्माण राजा खारवेल के शासनकाल के दौरान जैन भिक्षुओं द्वारा किया गया था। यह गुफाएं उदयगिरि और खंडगिरि की पहाड़ियों पर स्थित हैं। उदयगिरि और खंडगिरि गुफाओं के आस पास 18 अन्य गुफ़ाएं भी स्थित हैं।

लिंगराज मंदिर

लिंगराज मंदिर में कैसे पहुँचें ?

हवाई मार्ग से लिंगराज मंदिर में पहुँचने के लिये बीजू पटनायक अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से टैक्सी या ऑटो टैक्सी के माध्यम से पहुँच सकते हैं। हवाई अड्डे से मंदिर की दूरी लगभग 3.5 किलोमीटर है।

रेल मार्ग से लिंगराज मंदिर में पहुँचने के लिये भुवनेश्वर रेलवे स्टेशन से ऑटो टैक्सी या पैदल ही मंदिर तक जा सकते हैं। रेल मार्ग से मंदिर की दूरी लगभग 3 किलोमीटर है।

रोड मार्ग से लिंगराज मंदिर में पहुँचने के लिये उड़ीसा राज्य के किसी भी शहर से परिवहन निगम की बसों,निजी बसों और टैक्सियों के माध्यम से मंदिर परिसर में पहुँच सकते हैं।

लिंगराज मंदिर के पास स्थित होटल  

लिंगराज मंदिर के पास स्थित होटलों के बारे में जानकारी नीचे दी गयी है। यह सभी होटल मंदिर के पास ही स्थित है। आप अपनी सुविधानुसार नीचे दिये गए किसी भी होटल में रुक सकते हैं-

1- Hotel Kalinga Ashok.

2- OYO 78097 M R Homes.

3- OYO 28275 Archie Oasis.

4- HOTEL UTKAL INN.

5- Airport Suite Royal Villa.

6- Hotel Rajdhani.

7- Yes R Guest House.

8- Airavat.

9- OYO 75953 Shine Inn 2.

10- Hotel Pushpak.

Conclusion

आशा करता हूँ कि मैंने जो आपको लिंगराज मंदिर के बारे में आपको जानकारी दी वह आपको अच्छे से समझ आ गयी होगी। मैंने इस पोस्ट में इस मंदिर से संबन्धित सम्पूर्ण जानकारी देने का प्रयास किया है।

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 Note 

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