दिलवाड़ा जैन मंदिर के बारे में जानकारी
नमस्कार दोस्तों स्वागत है आप सभी का मेरे एक और नये लेख में जिसमें मैं आज आपको दिलवाड़ा जैन मंदिर के बारे में जानकारी दूँगा। दिलवाड़ा मंदिर जैन मंदिरों का एक समूह है। जो राजस्थान के सिरोही जिले में माउंट आबू बस्ती के पास में स्थित है। यह मंदिर 5 मंदिरों का एक समूह है। जिसमें धार्मिक दर्शन और सिद्धांतों के बारे में बताया जाता है। जैन धर्म राजस्थान का बहुत प्राचीन धर्म है। इस धर्म को हिन्दू धर्म की ही एक शाखा माना जाता है। जैन धर्म को मानने वाले लोग अपनी संस्कृति और धर्म से बहुत जुड़े हुए होते हैं। यह लोग अपने दैनिक जीवन में ईमानदारी और मितव्ययिता का अनुसरण करते हैं।
दिलवाड़ा जैन मंदिर का इतिहास
दिलवाड़ा जैन मंदिर के बारे में बताया जाता है कि सर्वप्रथम इस मंदिर को राजा भीम शाह द्वारा बनवाया गया था। बाद में 11 वीं से 15 वीं शताब्दी के बीच ढोलका के जैन मंत्री वास्तुपाल ने इस मंदिर का पूर्ण निर्माण करने के लिए रुपये दान किए थे। बाद में अनेक राजाओं ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण किया था। यह मंदिर जैन धर्म के अनुयावियों के लिए एक तीर्थ स्थान है। यह धार्मिक मंदिर होने के साथ-साथ एक पर्यटन स्थल भी है। जैन धर्म के अनुयावियों ने राजस्थान में अनेक मंदिरों का निर्माण किया था, लेकिन दिलवाड़ा के मंदिरों को इन मंदिरों में सबसे अधिक प्रभावशाली माना जाता है।
दिलवाड़ा जैन मंदिर की वास्तुकला
दिलवाड़ा जैन मंदिर का निर्माण नागर शैली के अनुसार किया गया है। यह मंदिर प्राचीन पांडुलिपियों का संग्रह है। दिलवाड़ा मंदिरों में एक ही आकार के पांच मंदिर हैं और ये सभी एक मंजिला मंदिर हैं। जिनको 48 स्तंभों पर बनाया गया हैं। जिनमे विभिन्न महिलाओं की नृत्य मुद्राओं में सुंदर आकृतियां हैं। इस मंदिर का सबसे मुख्य आकर्षण रंग मंडप है। जो गुंबद के आकार की छत है। इस छत के बीच में एक झूमर जैसी संरचना बनाई गयी है। इसके चारों ओर पत्थर से बनी ज्ञान की देवी विद्या देवी की सोलह मूर्तियाँ विराजमान हैं। इस मंदिर की सभी छतों, दरवाजों, स्तंभों और पैनलों में बारीक नक्काशीदार सजावटी डिजायन बनाया गया है। जो इस मंदिर स्थापत्य कला को दर्शाते हैं।
दिलवाड़ा में पाँच जैन मंदिर
दिलवाड़ा मंदिर परिसर पहाड़ियों की एक श्रृंखला के बीच में स्थित है। जिसमें
कुल पाँच मंदिर विराजमान हैं। इन सभी मंदिरों की अपनी अलग-अलग पहचान है। यह सभी
मंदिर एक ऊंची दीवार वाले परिसर के अंदर विराजमान हैं। इन मंदिरों के बारे में
नीचे विस्तार से बताया गया है।
1- श्री आदिनाथ या विमल वसाही मंदिर
यह मंदिर अन्य सभी मंदिरों में सबसे पुराना मंदिर है। जो जैन धर्म के पहले
तीर्थंकर आदिनाथ जी या ऋषभ देव को समर्पित है। इस मंदिर को सन 1032 ईस्वी में गुजरात के चालुक्य राजा भीम प्रथम के मंत्री
विमल शाह ने बनवाया था। यह मंदिर एक विशाल खुले प्रांगण में बना है। जिसमें
तीर्थंकरों की छोटी-छोटी मूर्तियों रखी गई हैं। मंदिर के छत में छत में कमल की
कलियों,
पंखुड़ियों, फूलों और जैन पौराणिक कथाओं के दृश्यों की उत्कीर्ण डिजाइन को
बनाया है, और पशु जीवन की आकृति, स्वप्न से तीर्थंकरों के अवतार तक की जीवन यात्रा को उकेरा
गया है। इसके मुख्य हॉल में भगवान आदिनाथ की मूर्ति को स्थापित किया गया है। ऐसी
मान्यता है कि इस मंदिर को बनाने में 1500 राजमिस्त्री और 1200 मजदूरों को 14 साल का समय लग गया था, और इसे बनाने में लगभग 185 करोड़ रुपये खर्च हुए थे।
2- श्री नेमिनाथ जी या लूना वसाही मंदिर
यह मंदिर जैन धर्म के 22वें संत श्री नेमी नाथजी को समर्पित मंदिर है। इसका
निर्माण पोरवाड़ भाई तेजपाल और वास्तुपाल द्वारा किया गया था। जो गुजरात के वाघेला
शासक के दरबार में मंत्री थे। इन्होंने इस मंदिर का निर्माण सन 1230 ईस्वी में
किया था। बाद में मेवाड़ के महाराणा कुंभा ने इस मंदिर में स्तंभों का निर्माण
करवाया था। इस मंदिर की बनावट विमल वसाही मंदिर के समान ही है। लेकिन मंदिर के
अंदर की बनावट विमल वसाही मंदिर से और अधिक शानदार है। मुख्य हॉल के ऊपर एक गुंबद
बना है। जिसके बीच में एक बड़ा सजावटी लटकन लटका हुआ है। मंदिर परिसर में एक
वृत्ताकार बैंड में जैन तीर्थंकरों की बैठी हुई मुद्रा में 72 आकृतियाँ बनी हैं और
इस बैंड के ठीक नीचे एक अन्य गोलाकार बैंड में जैन भिक्षुओं की 360 छोटी आकृतियाँ विराजमान
हैं।
3- श्री ऋषभदाओजी मंदिर या पीठलहार मंदिर
इस मंदिर का निर्माण अहमदाबाद के सुल्तान बेगड़ा के मंत्री भीम शाह ने सन 1316 से 1432 ईस्वी के बीच किया था। इस मंदिर का नाम पीठलहार मंदिर रखा
गया क्योंकि इस मंदिर की अधिकांश मूर्तियों के निर्माण में 'पिट्ठल' (पीतल धातु) का उपयोग किया जाता है। इस मंदिर को भी आदिनाथ
मंदिर ही कहा जाता है। यहाँ पर जैन धर्म के पहले तीर्थंकर
ऋषभ देव (आदिनाथ) की एक विशाल मूर्ति विराजमान है।
जो पंच धातुओं से मिलकर बनी है। मंदिर परिसर में मिले
शिलालेख के अनुसार मूर्ति का वजन लगभग 108 मन (चार मीट्रिक टन) है। जो 8 फीट ऊंची
और 5.5 फीट चौड़ी है।
4- श्री पार्श्वनाथ मंदिर या खरतार वसाही मंदिर
यह मंदिर दिलवाड़ा के सभी मंदिरों में सबसे ऊंचा मंदिर है। जिसमें 4 बड़े-बड़े
मंडप बने हुए हैं। इए मंदिर का निर्माण सांगवी मंडलिक और उनके परिवार द्वारा सन 1458-59
ईस्वी में किया गया था। यह मंदिर भगवान पार्श्वनाथ को समर्पित है। इसमें तीन
मंजिला इमारत है। जिसमें गर्भगृह के ताल पर चार बड़े मंडप बने हुए हैं जिनमें
पार्श्वनाथ की चौमुख मूर्ति विराजमान है। इस मंदिर परिसर के पहली मंजिल पर चौमुखा
मूर्ति के सामने चिंतामणि पार्श्वनाथ की प्रतिमा, दूसरी मंजिल में मगलकर
पार्श्वनाथ की प्रतिमा और तीसरी मंजिल में मनोरथ - कल्पद्रुम पार्श्वनाथ को सभी नौ
नागों के हुड के साथ चित्रित किया गया है। इस मंदिर के गलियारों में तीर्थकारों के
जन्म से पहले उनकी माँ के 14 सपनों को चित्रित किया गया है।
5- श्री महावीर स्वामी मंदिर
यह जैन मंदिर जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी को समर्पित मंदिर है। इसका निर्माण सन 1852 ईस्वी में किया गया था। यह एक छोटा सा मंदिर है जिसकी दीवारों पर शानदार नक्काशी की गई है। मंदिर की दीवारों पर राजस्थान के कलाकारों द्वारा बनाई गई फूलों, कबूतरों, दरबार के दृश्य, नाचती हुई लड़कियों, घोड़ों, हाथियों और अन्य दृश्यों की विस्तृत नक्काशी है। भगवान महावीर स्वामी के दोनों ओर 3 तीर्थंकरों की मूर्तियाँ रखी गई हैं। मंदिर के बाहर आयताकार आकार का एक संगमरमर का स्लैब है जिसके ऊपर एक त्रिकोणीय पत्थर पर लघु आकार के तीर्थकारों के 133 चित्र बने हुए हैं।
दिलवाड़ा जैन मंदिर के बारे में तथ्य
दिलवाड़ा जैन मंदिर के बारे में कुछ रोचक तथ्य हैं। जिनके बारे में नीचे बताया
गया है।
1- दिलवाड़ा मंदिर में कमल के पेंडेंट और संकेंद्रित वलय छत जैसी शानदार
नक्काशी है जो आंतरिक गर्भगृह विमल वसाही को सुशोभित करती है। यह नक्काशी हमें उस
समय के कारीगरों की विशेषज्ञता के बारे में बताती है। उस समय ये कारीगर काफी
भाग्यशाली थे कि उन्हें ऐसा संरक्षक शासक मिला जिसने उनकी कला को जितना संभव हो
सके उसे बाहर निकालने के लिए प्रोत्साहित किया। ऐसा करने के लिए राजा उन्हें पत्थर
की नक्काशी से एकत्र की गई धूल की मात्रा के बराबर सोने का भुगतान करता था। इस प्रकार
अधिक नक्काशी का कार्य होता था।
2- ऐतिहासिक इमारतों की वास्तुकला एक समान है। दिलवाड़ा मंदिर में भी कई बयार आक्रमण
हुए थे। जिस कारण इस मंदिर का कई बार जीर्णोद्धार किया गया। जिनमें से कुछ काम आज
तक चल रहे हैं। सन 1311 ईस्वी में खिलजी वंश के शासक अलाउद्दीन खिलजी ने इस मंदिर पर आक्रमण
किया था। बाद में मंडोर के 2 कारीगरों लालग और बीजग ने इस मंदिर के मरम्मत का कार्य किया था। बाद
में सन 1906 और सन 1950-65 ईस्वी में उन नक्काशीयों की मरम्मत करके एक और नया सेट बनाया
गया था।
3- यह एक पवित्र स्थान है। जिसका मुख्य रूप से धार्मिक उद्देश्यों के लिए उपयोग किया जाता है, फिर भी इसके अंदर एक भंडार गृह है। यहां एक बीते युग की दुर्लभ प्राचीन पांडुलिपियां मिली हैं। दिलवाड़ा मंदिर विद्वानों की गतिविधियों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है।
दिलवाड़ा जैन मंदिर का खुलने का समय
दिलवाड़ा में स्थित जैन मंदिर पूरे सप्ताह खुले रहता है। आप कभी भी इस मंदिर में दर्शन के लिए जा सकते हो। यह मंदिर सुबह 6:00 बजे से दोपहर 12:00 बजे तक जैन भक्तों के लिए खुला रहता है, और 12:00 बजे से शाम 5:00 बजे तक पर्यटकों के लिए खुला रहता है।
दिलवाड़ा जैन मंदिर में कैसे पहुँचे ?
हवाई मार्ग से दिलवाड़ा जैन मंदिर में पहुँचने के लिये महाराणा प्रताप उदयपुर
हवाई अड्डे से टैक्सी या बस के माध्यम से मंदिर तक पहुँच
सकते हैं। हवाई अड्डे से मंदिर की दूरी लगभग 177 किलोमीटर है।
रेल मार्ग से दिलवाड़ा जैन मंदिर में पहुँचने के लिये किवारली रेलवे स्टेशन से
टैक्सी या बस से मंदिर परिसर तक पहुँच सकते हो। रेलवे स्टेशन से मंदिर की दूरी
लगभग 29 किलोमीटर है।
रोड मार्ग से दिलवाड़ा जैन मंदिर में पहुँचने के लिये राजस्थान राज्य के किसी भी शहर से परिवहन निगम की बसों,निजी बसों और टैक्सियों के माध्यम से मंदिर परिसर में पहुँच सकते हैं।
दिलवाड़ा जैन मंदिर के पास स्थित होटल
दिलवाड़ा जैन मंदिर के आस पास स्थित होटलों के बारे में जानकारी नीचे दी गई है
आप अपनी सुविधानुसार किसी भी होटल में रुक सकते हो।
1- Hotel Simran.
2- Hotel Silver Oak.
3- Padmavati Hotel.
4- Hotel raj darbar.
5- Hotel Lake Palace.
6- Hotel Golden Berry.
7- The Leef Inn.
8- RC Villa.
9- Lake Inn.
10- Hotel Hilltone.
FAQ
Q- दिलवाड़ा मंदिर किसने बनवाया?
A- दिलवाड़ा मंदिर को राजा भीम शाह द्वारा बनवाया गया था।
Q- दिलवाड़ा मंदिर स्थित है?
A-
दिलवाड़ा मंदिर राजस्थान के सिरोही जिले में माउंट आबू बस्ती के पास
में स्थित है।
Q- दिलवाड़ा मंदिर किस धर्म से संबंधित है?
A- दिलवाड़ा मंदिर जैन धर्म से संबंधित है।
Q- दिलवाड़ा जैन मंदिर कितने हैं?
A-
दिलवाड़ा में पाँच जैन मंदिरों का एक समूह है।
Q- दिलवाड़ा मंदिर कहाँ पर स्थित है?
A- दिलवाड़ा मंदिर राजस्थान में स्थित हैं।
Conclusion
आशा करता हूँ कि मैंने जो आपको दिलवाड़ा जैन मंदिर के बारे में आपको जानकारी
दी वह आपको अच्छे से समझ आ गयी होगी। मैंने इस पोस्ट में इस मंदिर से संबन्धित
सम्पूर्ण जानकारी देने का प्रयास किया है।
अगर आप किसी मंदिर के बारे में जानना चाहते हो तो हमें कमेंट करके बताएं। जो
भी लोग आपके आस पास में या आपके दोस्तो में मंदिरों के बारे में जानना चाहते हैं,
आप उनको हमारा पोस्ट शेअर कर सकते है। हमारी पोस्ट को अपना
कीमती समय देने के लिए धन्यवाद।
Note
अगर आपके पास दिलवाड़ा जैन मंदिर के बारे में और अधिक जानकारी है तो आप हमारे
साथ शेअर कर सकते हैं, या आपको मेरे द्वारा दी गयी जानकारी आपको गलत लगे तो आप तुरंत हमे कॉमेंट करके
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